चुनाव आयोग लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटा है। तारीखों का ऐलान भी हो चुका है। वोटर लिस्ट से लेकर ईवीएम तक सब कुछ फाइनल किया जा रहा है। लेकिन इन सबके बीच क्या आपने कभी सोचा है कि वोट करते समय आपकी उंगली पर लगने वाली स्याही कहां से आती है? वह स्याही कौन बनाता है? उस स्याही के एक डिब्बे की कीमत क्या है? तो आइये आज जानते हैं।
1962 के लोकसभा चुनावों में, पारदर्शिता सुनिश्चित करने और फर्जी मतदान को रोकने के लिए पहली बार उंगली पर स्याही की शुरुआत की गई थी। तब से हर लोकसभा और विधानसभा चुनाव में इस अलग स्याही का इस्तेमाल किया जाता रहा है। जब पहली बार स्याही का उपयोग किया गया था, तो चुनाव आयोग का मानना था कि स्याही लगाने से दोबारा मतदान नहीं होगा और फर्जी मतदान पर रोक लगेगी।
तब से आज तक केवल एक ही कंपनी स्याही का उत्पादन कर रही है। इस कंपनी का नाम मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड (MPVL) है। यह कर्नाटक सरकार की कंपनी है और इसकी शुरुआत 1937 में हुई थी। एमपीवीएल की स्थापना कृष्ण राजा वाडियार ने की थी। शुरुआत में इस कंपनी का नाम मैसूर लॉक फैक्ट्री था। 1947 में जब देश आज़ाद हुआ, तो सरकार ने कंपनी पर कब्ज़ा कर लिया और इसका नाम बदलकर मैसूर लॉक एंड पेंट्स लिमिटेड रख दिया।
1989 में कंपनी ने वार्निश बनाना शुरू किया और उस समय अपना नाम भी बदल लिया। एमपीवीएल का योगदान भारत की चुनावी यात्रा में बेहद महत्वपूर्ण है।
70 के दशक से लेकर आज तक सिर्फ एक ही कंपनी को चुनाव में इस्तेमाल होने वाली स्याही बनाने की इजाजत है। स्याही का फॉर्मूला भी एक रहस्य है और कंपनी इस फॉर्मूले को किसी और के साथ साझा नहीं करती है। एमपीवीएल राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला की मदद से स्याही तैयार करता है।
मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड (एमपीवीएल) इस स्याही को न केवल भारत बल्कि दुनिया के 25 अन्य देशों में भी निर्यात करता है। एमपीवीएल द्वारा उत्पादित स्याही की एक बोतल से कम से कम 700 उंगलियों पर स्याही लगाई जा सकती है। प्रत्येक शीशी में 10 मिलीलीटर स्याही होती है।
फाइनेंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, स्याही की 10 मिलीलीटर की बोतल की कीमत लगभग 127 रुपये है। इस लिहाज से 1 लीटर की कीमत करीब 12,700 रुपये होगी। अगर एक एमएल यानी एक बूंद की बात करें तो इसकी कीमत लगभग 12.7 रुपये है। भारत निर्वाचन आयोग ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए एमपीवीएल को 26 लाख से अधिक स्याही की शीशियां बनाने की जिम्मेदारी सौंपी है और इस स्याही का उत्पादन भी अंतिम चरण में है।