उदय शंकर भट्ट का साहित्यिक परिचय
बहुमुखी प्रतिभा से परिपूर्ण भट्ट जी का साहित्यिक जीवन काव्य-संग्रह से आरंभ हुआ। सन् 1922 ई. से इन्होंने नाटकों की रचना प्रारंभ की और आजीवन नाट्य-सृजन में लगे रहें। भट्ट जी ने एकांकी विधा को भी एक नई दिशा प्रदान की। रंगमंच एवं रेडियों-प्रसारण दोनों ही क्षेत्रों में इन्होंने एकांकी सफल सिद्ध हुए हैं। किसी भी समस्या को जीवन्त रूप में प्रस्तुत कर देना भट्ट जी के एकांकियों की सर्वप्रमुख विशेषता है। भट्ट जी के नाट्य-कला देश कि साहित्यिक प्रगति के साथ-साथ नया मोड़ लेती रही है।
उदय शंकर भट्ट जी का प्रथम एकांकी-संग्रह “अभिनव एकांकी” के नाम से सन् 1940 ई. में प्रकाशित हुआ था। इसके पश्चात् इन्होंने सामाजिक, ऐतिहासिक, पौराणिक, मनोवैज्ञानिक इत्यादि अनेक विषयों पर एकांकियों की रचना की, जिनमें ‘समस्या का अंत’, ‘परदे के पीछे’, ‘अभिनव एकांकी’, ‘अस्तोदय’, ‘धूपशिखा’, ‘वापसी’, ‘चार एकांकी’ इत्यादि इनके प्रतिनिधि एकांकी-संग्रह माने जाते हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी उदय शंकर भट्ट जी ने नाटक, कविता तथा उपन्यासों की भी रचना की है।
उदय शंकर भट्ट का साहित्यिक अवदान
भट्ट जी ने पौराणिक, समस्या-प्रधान, हास्य-प्रधान, प्रतीकात्मक एवं सामाजिक समस्याओं से संबंधित एकांकियों की रचना की है। इन्होंने वैदिक काल से लेकर वर्तमान काल तक कि भारतीय जीवन धारा की संवेदना को चित्रित करने का प्रयास किया गया है। भट्ट जी की रचनाओं में विभिन्न समस्याओं को जीवन्त रूप से उजागर किया गया है। युग की प्रवृत्तियों और सामाजिक परिवर्तनों से इन्होंने सदैव संगति बनाए रखी है।
उदय शंकर भट्ट की प्रमुख रचनाएं
भट्ट जी की प्रमुख रचनाएं एवं कृतियां कुछ इस प्रकार से हैं – मानसी, राका, नए मेहमान, समस्या का अन्त, परदे के पीछे, विक्रमादित्य, सागर विजय, अंतहीन अंत, नया समाज, अभिनव एकांकी, चार एकांकी, तक्षशिला, अमृत और विष, धूपशिखा, वापसी एवं अन्त्योदय आदि इनकी प्रमुख कृतियां हैं।
उदय शंकर भट्ट के नाटक
विक्रमादित्य
दाहर
सिंह पल
मुक्तिबोध
शंका विजय
अम्बा
सागर विजय
कमला
अंतहीन अंत
नया समाज
पार्वती
कालिदास
तुलसीदास
विद्रोहिणी अम्बा
विश्वामित्र
राधा
मत्स्यगंधा
अशोक बन बंदिनी
विक्रमोर्वशीय
अश्वत्थामा
गुरु द्रोणा का अंतर्निरीक्षण
नहुष निपात
एकला चलो रे
क्रांतिकारी
तीन नाटक ।
उदय शंकर भट्ट के उपन्यास
वह जो मैंने देखा
नए मोड़
सागर लहरें और मनुष्य
लोक-परलोक
शेष-अशेष
दो-अध्याय ।
उदय शंकर भट्ट की कविता (काव्य-संग्रह)
मानसी
राका
तक्षशिला
विसर्जन
अमृत और विष
इत्यादि
युगदीप
यथार्थ और कल्पना
विजयपथ
अन्तर्दर्शन: तीन चित्र
मुझमें जो शेष है ।
उदय शंकर भट्ट की भाषा शैली
भट्ट जी ने अपने साहित्य सृजन में सरल, स्थिर व प्रवाहपूर्ण बोधगम्य भाषा का प्रयोग किया है। भाव व पात्रों के अनुसार उनकी भाषा का रूप बदलता रहता है। इनकी भाषा में उर्दू के शब्दों का बाहुल्य है, जैसे- ओफ, फायदा, बेहद, हर्ष इत्यादि। संस्कृत शब्दावली का प्रयोग यत्र-तत्र दिखाई पड़ता है, जैसे- गृहस्थ, सुसंस्कृति, निर्दई इत्यादि। संवाद सरल व छोटे-छोटे वाक्यों वाले हैं। भट्ट जी की लेखन-शैली की एक विशेषता प्रश्नों के माध्यम से भावाभिव्यक्ति है, जैसे- क्या छत तुम्हारे लिए है? कहो तो मैं कहूं? क्या फायदा? इत्यादि। कहीं-कहीं वाक्य सूक्ति का-सा आभास कराते हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भट्ट जी की भाषा सरल, सहज, बोधगम्य व शैली व्याख्यात्मक है।
उदय शंकर भट्ट का साहित्य में स्थान
भट्ट जी एक सफल नाटककार व एकांकीकार के रूप में अपनी विशिष्ट छवि बनाने वाले प्रख्यात साहित्यकार हैं। इन्होंने आधुनिक युग के अनुरूप चरित्र-सृष्टियों की रचना की है। इनके एकांकी रंगमंचीय होने तथा जीवन की मौलिक समस्याओं से संबंधित होने के कारण मर्मस्पर्शी हैं।
आधुनिक हिन्दी एकांकीकारों में भट्ट जी का एक महत्वपूर्ण एवं विशिष्ट स्थान है। हिन्दी एकांकी साहित्य इनके योगदान को सदैव याद रखेगा।